ढूँढ़ रहा हूँ उत्तर

मीत तुम्हारे नयनों ने जो भेजे थे मुझको सन्देशे
अर्थ नये मैं ढूँढ़ रहा हूँ,  कुछ उनकी परिभाषाओं के
 
तय कर ली थी बिना माध्यम मेरे नयनों तक की दूरी
बहती हुई तरंगों में घुल,चहल्कदमियाँ कर आये थे
असमंजस में पड़ी हवा ने रुक कर इनको देखा बहते
गीत इन्होंने बिना रागिनी औ’ सरगम के बिन गाये थे
 
सुलझाने इस एक पहेली को जो पूछी बही हवा ने
ढूँढ़ रहा हूँ  उत्तर मिल जायें उनकी जिज्ञासाओं के
 
मैने सब कुछ सुना भले ही मौन रहे थे वे सन्देसे
आलोड़न के वक्र गात में लिखे हुए थे सारे अक्षर
पलकों की बरौनियां छू ली थी जैसी ही आ हौले से
झंकृत हुए उन्हें छूते ही एक एक कर के सारे स्वर
 
वाद्य लहर को कर जो ढाला एक नया संगीत अनूठा
ढूढ़ रहा कुछ अर्थ नये पाऊँ उसकी अभिलाषाओं के
 
अर्थ न जाने कितने होते छुपे हुए कुछ सन्देसों में
और न जाने रह जाते है कितने बिना हुए संप्रेषित
कितने सन्देशों में सब कुछ सहज उभर कर आ जाता है
कुछ में लेकिन सन्देशों के अनगिन क्रम होते संकेतित
 
बिना किसी संकेत,अर्थ के जो हो सहज स्वयं संप्रेषित
ढूँढ़ रहा हूँ नव सन्देशे, मैं कुछ ऐसी आशाओं के.

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