सन्ध्या की पुस्तक के पन्न खोले, गूँजा नाम तुम्हारा

सन्ध्या की पुस्तक के पन्न खोले, गूँजा नाम तुम्हारा
सुधियों के गलियारों में जब डोले, गूँजा नाम तुम्हारा
 
जीवन की हर इक गुत्थी को सुलझाने की कोशिश की जब
परिभाषायें जब भी ढूँढ़ी हैं बिम्बों की गहरी हल्की
गति में चलते हुए, मोड़ पर ठिठके, नजर उठा कर देखा
थी वितान के वातायन में केवल एक तुम्हारी झलकी
 
मार्ग चिह्न के हर पत्थर पर देखा था बस नाम तुम्हारा
सरिता के जल में प्रतिबिम्बित पाया केवल नाम तुम्हारा
 
छूती है मेरी उंगली जब किसी वर्तनी के अक्षर को
नाम तुम्हारे वाले, होतीं हाथों में गहरी रेखायें
जुड़ जाती है किस्मत वाली स्वत: उन्ही से अकस्मात ही
जुड़ती हैं पूरनमासी से ज्यों चन्दा की शुभ्र विभायें
 
हो जाता हर इक गाथा में तब संचारित नाम तुम्हारा
श्रुति में,स्मृति में, और शब्द में मिले समाहित नाम तुम्हारा
 
उड़े धुँये के बादल छाये जब भी आकर दृष्टि क्षितिज पर
लगता गुंथे हुए हैं उनमें कुछ जाने पहचाने चेहरे
यादों के प्रत्याशी बनने हेतु सभी का नामांकन था
पर जितने भी शब्द अधर की गलियों से आकर मुस्काये
 
एक एक कर सबने ही दोहराया केवल नाम तुम्हारा
स्वर ने निकल कंठ से बाहर गाया केवल नाम तुम्हारा

1 comment:

शारदा अरोरा said...

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