चर्चा ही चर्चायें बाकी अब


चर्चा ही चर्चायें बाकी अब  सब मंचों पर
 
किसने दल बदला है
देकर कौन गया इस्तीफ़ा
किसने कूटनीति का अब तक
क ख ग न सीखा
किसने राह दिखाई
होकर कौन रहा अनुमोदी
कजरी सुनता कौन
राग का रहता कौन विरोधी
 
एक गिलट कैसे भारी है सौ सौ टंचों पर
बचपन का इतिहास कौन है
रख न सका जो याद
कौन जेल था गया
राज से किसने की फ़रियाद
किसकी एड़ी तले दबी है
पूरी अर्थ व्यवस्था
किसके कारण करे मजूरी
ले विश्राम, अवस्था
 
किसके पाँव जमे रहते हैं ढुलके कंचों पर
ज्ञानवान है कौन यहाँ पर
कौन रहा अनजान
प्रश्नों को सुलझाया करतीं
पानों की दूकान
चर्चा करते बड़े बड़े सब
ज्ञानी और ध्यानी
दुविधा होती नहीं, बात
उनकी जाती मानी
 
जुड़ते जाते सभी फ़ैलते हुये प्रपंचों पर

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

नहीं समझ आता यह दलदल,
और कहाँ से शुरु समस्या।

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...