आज तुम्हारी विरुदावलियाँ मैं गाता

आज तुम्हारे लिये शान में मैं पढ़ता हूँ चार कशीदे
कल जब मेरी बारी आये, मेरी पीठ थपथपाना तुम
 
आज लिखी जो कविता तुमने, कितनी ऊँचाई छू ली है
जितने शब्द लिखे हैं उनमें नही एक भी मामूली है
वाह वाह ! क्या लिखा, लग रहा जैसे रख दी कलम तोड़ कर
नीरज दिनकर बच्चन सबको, आये पीछे कहीम छोड़ कर
 
आज तुम्हारे लिक्खे हुये को मैं पंचम सुर में गाता हूँ
कल मैं जो कुछ लिखूँ उसे सरगम में पिरो गुनगुनाना तुम
 
समिति प्रशंसा की अपनी यह, हमें विदित है,है पारस्पर
चलो करें इसलिये प्रशंसा एक दूसरे की बढ़ चढ़ कर
कविता लेख कहानी में क्या कथ्य ? नहीं कुछ लेना देना
हर इक कविता "रश्मिरथी" है, हर किस्सा है "तोता मैना"
 
आज तुम्हारी विरुदावलियाँ मैं गाता हूँ बिन विराम के
कल मेरी जब करो प्रशंसा, आंधी बने सनसनाना तुम
 
उपमा अलंकार सब के सब सर को पीट लिया करते हैं
छन्द तुम्हारी कविताओं के आगे आ पानी भरते हैं
महाकाव्य औ’ खंडकाव्य सब रहते खड़े आन कर द्वारे
पड़े तुम्हारी दृष्टि और वे अपना सोया भाग्य संवारे
 
आज तुम्हारा भौंपा बन कर मैं जैसे गुणगान कर रहा
कल जब मेरी बात चले तो घुँघरू बने झनझनाना तुम

3 comments:

Archana Chaoji said...

बहुत सुन्दर ....

Udan Tashtari said...

AApka bahut aabhar prabhu..ab hum ghunghuroo banne ki taiyari karte hai..:)


Ha ha!!!

Ye blog jagat ke swaroop ka ekdum sateek charitra chitran :)

Udan Tashtari said...

आज तुम्हारा भौंपा बन कर मैं जैसे गुणगान कर रहा

:)

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