और मेरी खामोशी गीत गुनगुनाती है

सांझ की तराई में
शाल सुरमई ओढ़े
धुन्ध में नहाई सी
कोई छवि आकर के दिलरुबा बजाती है
और मेरी खामोशी गीत गुनगुनाती है
 
ओस जैसे झरती है
फूल की पंखुरियों पर
उगते दिन की राहों में
मोती जैसे कदमों से पास बैठ जाती है
और मेरी खामोशी गीत गुनगुनाती है
 
तारकों की छाया में
चाँदनी की कोई किरन
नभ की गंगा में उतर
अपना मुँह धोते हुए डुबकियाँ लगाती है
और मेरी खामोशी गीत गुनगुनाती है
 
पतझरों के पत्तों पर
रंग की कलम कोई
मौसमों से ले लेकर
कल्पना के आँगन के चित्र कुछ बनाती है 
और मेरी खामोशी गीत गुनगुनाती है

2 comments:

Rajendra kumar said...

बहुत ही सुन्दर भाव लिए सार्थक कविता,आभार.

प्रवीण पाण्डेय said...

मौन करे मनमाना गुंजन

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