लिखा था तुमने खत में.

आये वे पल याद
अचनक बहुत दिनों के बाद
चले थे चार कदम तुम साथ
एक अनजाने पथ में

सपनों के प्याले फिर से लग गये छलकने
आशाओं के पंछी लगे गगन में उड़ने
महक भर गई नये दिवस की आ सांसों में
रजनीगंधा दोपहरी में लगी महकने

होंठ पर आया था जब नाम
हँसी थी यमुना तट पर शाम
थिरकने लगे नृत्य में पांव
उस घड़ी वंशीवट में

सौगंधों की रेशम डोरी फिर लहत्राई
पीपल पत्रों ने सारंगी नई बजाई
मंदिर की चौखट पर संवरीं वन्दन्वारें
अम्बर ने थी पिघली हुई विभा बरसाई

लगे थे बजने मधुरिम गीत
उमड़ती थी हर पग में प्रीत
गये हैं एकाकी पल बीत
लिखा था तुमने खत में.

समय चक्र की फिर परिवर्तित गति आवारा
जो धो गई ह्रदय का सजा हुआ चौबारा
बहती हुई हवा ने मिलन बांसुरी पर जब
डूबा हुआ विरह में ही हर राग संवारा

अटक कर रही नजर उस मोड़
गया था मन को कोई झिंझोड़
चले तुम गए मुझे थे छोड़
चढ़े फूलों के रथ में

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

भावों से कदम ताल मिलाकर चलती कविता।

Shardula said...

हाय राम, ये तो युगल गीत सा लग रहा है-- और "तुम जो मिले थे..." जैसी तेज़ धुन में है एक पात्र...बहुत मज़ा आयेगा इसे गाने में...शायद choreograph भी हो जाए:) इस बहुत ही सुन्दर, सरल परन्तु गहरे गीत के लिए थैंक्स ! थैंक्स ! देखा ना नया फॉरमेट और सरलता कितना सुन्दर और अलग सा बना देती है गीत को! वेरी गुड :)
सादर...

Rakesh Kumar said...

सुनीता जी की हलचल से आपके ब्लॉग पर चल कर आया हूँ.आपकी प्रस्तुति सुन्दर और भावपूर्ण है.
पढकर बहुत अच्छा लगा,राकेश जी.

समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा.

Udan Tashtari said...

अति सुन्दर भावपूर्ण!!

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