कितना खोया है कितना पाया है

शाख कलम की फूल अक्षरों के जब नहीं खिला पायेगी
छन्दों में जब ढल न सकेंगी,उमड़ भावनायें अंत:स की
वाणी नहीं गीत गायेगी,डुबो रागिनी में स्वर लहरी
और दृष्टि से कुछ कहने की कला न रह पायेगी बस की
 
 
ओ सम्बन्धित ! क्या तब भी तुम मुझ से यह संबंध रखोगे
जो हर बार गीत को मेरे नया याम देता आया है
 
कल क्या होगा भान न इसका मुझको है, न है तुमको ही
हो सकता है कलम उठाने में हो जायें उंगलियाँ अक्षम
हो सकता है मसि ही चुक ले लिखते हुए दिवस की गाथा
या हो सकता चुटकी भर में जो यथार्थ लगता,होले भ्रम
 
कल परछाईं जब अपनी ही साथ छोड़ जाये कदमों का
क्या तुम तब भी दे पाओगे वह सावन,जो बरासाया है
 
कल मरुथल की उष्मा बढ़कर सोखे यदि भावों का सागर
नुचे परों वाले पाखी सी नहीं कल्पनायें उड़ पायें
मन हो बंजर और धरातल पर न फूटे कोई अंकुर
क्षितिज पार के ज्ञान वृत्त जब सहसा मुट्ठी में बँध जायें
 
कल जब अधर न बोलें कुछ भी महज थरथरा कर रह जायें
क्या तुम वह सब दुहराओगे,जो मैने अब तक गाया है
 
शब्दों को स्वर देने वाला, उनका रचनाकार अगर कल
मुझे बना कर नहीं रख सके, अपनी रचनाओं का माध्यम
तो क्या संभव चीन्ह सकोगे मुझको कहीं भूल से चाहे
इस अनंत में जहां ,रहा अस्तित्व सूक्ष्मतम अणु से भी कम
 
अंत आदि में कल जब मिश्रित हो जाये तो क्या संभव है
तुम कर सको आकलन कितना खोया है कितना पाया है

5 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

कितना खोया, कितना पाया,
जीवन हममें कहाँ समाया।

Shardula said...

शब्दों को स्वर देने वाला, उनका रचनाकार अगर कल
मुझे बना कर नहीं रख सके, अपनी रचनाओं का माध्यम
तो क्या संभव चीन्ह सकोगे मुझको कहीं भूल से चाहे
इस अनंत में जहां ,रहा अस्तित्व सूक्ष्मतम अणु से भी कम

अंत आदि में कल जब मिश्रित हो जाये तो क्या संभव है
तुम कर सको आकलन कितना खोया है कितना पाया है
=====
नमन! ये कविता नहीं जागृति है गुरुदेव!

सुनीता शानू said...

ब्लॉगर मीट नई पुरानी हलचल

Yashwant R. B. Mathur said...

शब्दों को स्वर देने वाला, उनका रचनाकार अगर कल
मुझे बना कर नहीं रख सके, अपनी रचनाओं का माध्यम
तो क्या संभव चीन्ह सकोगे मुझको कहीं भूल से चाहे
इस अनंत में जहां ,रहा अस्तित्व सूक्ष्मतम अणु से भी कम


बहुत ही बढ़िया सर।

सादर

Dr.Bhawna Kunwar said...

Bahut khub !

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...