अभी तलक भी घुली हुई हैं

तुम्हारी नजरें जहाँ गिरी थीं, कपोल पर से मेरे फिसल कर
हमारी परछाईयां उस जगह में अभी तलक भी घुली हुई हैं

हुई थी रंगत बदाम वाली हवा की भीगी टहनियों की
सजा के टेसू के रंग पांखुर पर, हँस पड़ी थी खिली चमेली
महकने निशिगंध लग गई थी, पकड़ के संध्या की चूनरी को
औ बीनती थी अधर के चुम्बन कपोल पर से नरम हथेली

जनकपुरी की वह पुष्प वीथि,जहा प्रथम दृष्टि साध होकर
मिली थी, उसकी समूची राहें अभी तलक भी खुली हुई हैं

न तीर नदिया का था न सरगम, औ न ही छाया कदम्ब वाल
न टेर गूंजी थी पी कहाँ की, न सावनों ने भिगोया आकर
मगर खुले रह गये अधर की जो कोर पर था रहा थिरकता
वही सुलगता सा मौन जाने क्या क्या सुनाता है अब भी गाकर

न जाने क्यों इस अनूठे पल में, उमड़ती घिरती हैं याद आकर
मुझे पकड़ कर अतीत में ले जायेंगी इस पर तुली हुई हैं

वो मोड़ जिस पर गुजरते अपने कदम अचानक ही आ मिले थे
वो मोड़ जिस पर सँवर गई थी शपथ के जल से भरी अंजरिया
उसी पे उगने लगीं हैं सपनों की जगमगाती हजार कोंपल
लगी उमड़ने बैसाख में आ भरी सुधा की नई बदरिया

ढुलक गई नभ में ईंडुरी से जो इक कलसिया,उसी से गिर कर
जो बूँद मुझको भिगो रही हैं वो प्रीत ही में धुली हुई हैं

8 comments:

Unknown said...

प्रकृति के फलक से फूल चुनकर गीत रूपी सुन्दर गुलदस्ता सजाया है आपने। प्रकृति शक्ति,शान्ति और सृजन का श्रोत रही है। श्रेष्ठ रचना के लिए बधाई.........अपना सृजन अनवरत रखे बन्धु।

स्वाति said...

न जाने क्यों इस अनूठे पल में, उमड़ती घिरती हैं याद आकर
मुझे पकड़ कर अतीत में ले जायेंगी इस पर तुली हुई हैं.....

वाह !! बहुत खूब ... दिल को छूने में सक्षम है आपकी सुंदर कविता के भावपूर्ण शब्द

Shar said...

:)Happy Birthday !

संजय कुमार चौरसिया said...

rakeshji janm din ki bahut bahut
badhai evam shubh-kaaamnayen

kavita ke bhav achchhe hain

http://sanjaykuamr.blogspot.com/

वीनस केसरी said...

राकेश जी,

जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं |

Nitish Raj said...

राकेश जी,
जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई।

Rajeev Bharol said...

राकेश जी,
जन्मदिन की बधाई.

शनिवार(मई २२, २०१०) को आप हमारे यहाँ आ रहे हैं कवि सम्मलेन में. इंतज़ार है. मिलने का इच्छुक हूँ.

प्रणाम.
राजीव

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

आदरणीय राकेश जी, जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई !!

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