माँ के चरणों में

विश्वासों के दीप जला कर भरे प्राण में सघन चेतना
बने सुरक्षा कवच, पंथ में हरने को हर एक वेदना
मिट्टी के अनगढ़ लौंदे से प्रतिमा सुन्दर एक संवारे
संस्कृतियों के अमृत जल से बने शिल्प को और निखारे


चारों मुख से सृष्टि रचयिता ने किसकी महिमा गाई थी
तन पुलकित मन प्रमुदित करती उसकी सुधियाँ पुरबाई सी


जीवन के अध्याय प्रथम का जो लिखती है पहला अक्षर
अधरों पर भाषा संवारती, और कंठ में बोती है स्वर
अभिव्यक्ति का ,अनुभूति का कण कण जिस पर आधारित है
बन कर प्राण शिराओं में जो प्रतिपल होती संचारिर है


काल निशा के घने तिमिर में उगे भोर की अरुणाई सी
तन पुलकित मन प्रमुदित करती उसकी सुधियाँ पुरबाई सी


दिशाबोध का क्रम होता है जिसके इंगित ही से प्रेरित
ग्रंथ हजारों लिखे गये पर हैं जिसकी क्षमतायें नेतित
दिवस नहीं बस एक बरस का, हर पल हर क्षण की जो धात्री
दिन में है संकल्प सूर्य जो, और दिलासा बने रात्री


पूजित है धड़कन सांसों से, वो भी, उसकी परछाईं भी
तन पुलकित मन प्रमुदित करती उसकी सुधियाँ पुरबाई सी

6 comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

माँ को नमन है,,राकेश जी सुंदर भावपूर्ण रचना..धन्यवाद

अमिताभ मीत said...

पूजित है धड़कन सांसों से, वो भी, उसकी परछाईं भी
तन पुलकित मन प्रमुदित करती उसकी सुधियाँ पुरबाई सी

प्रणाम ! आप की कविता के बारे में भला मैं क्या कहूँगा ..... बहुत सुन्दर राकेश भाई !!

एक बेहद साधारण पाठक said...

मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!

दिलीप said...

waah aaj ki pehli kavita maa ke upar poorn hindi me...

Mithilesh dubey said...

मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

Shardula said...

"विश्वासों के दीप जला कर भरे प्राण में सघन चेतना
बने सुरक्षा कवच, पंथ में हरने को हर एक वेदना
मिट्टी के अनगढ़ लौंदे से प्रतिमा सुन्दर एक संवारे
संस्कृतियों के अमृत जल से बने शिल्प को और निखारे "

सुन्दर !!

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...