श्वेत पत्रों से पंकज के फिसली हुई ओस की बूँद ढल स्याहियों में गई
बीन के तार के कम्पनों से छिटक एक सरगम आ सहसा कलम बन गई
फिर वरद हस्त आशीष बन उठ गया बारिशें अक्षरों की निरंतर हुईं
शब्द की छंद की माल पिरती हुई आप ही आप आ गीत तब बन गई.
माँ शारदा के चरणों में सादर नमन
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नव वर्ष २०२४
नववर्ष 2024 दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...
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7 comments:
:)
शुभप्रभात, शारदा पुत्र राकेश !!
ओस में धुले इन शब्दों को प्रणाम !
हमारा नमन भी पहुँचें...
बीन के तार?? ये बिम्ब...
आपकी बात ही निराली है राकेश भाई - गागर मे सागर।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
Maa vinapani ko shat shat naman !!!
सादर नमन!!!
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