ज़िन्दगी बस बिलम्बित बजाती रही

तुम को आवाज़ देता रहा हर निमिष
पर महज गूँज ही लौट आती रही

दर्द सीने में अपने छुपाये रखा
था बताने से कुछ भी नहीं फ़ायदा
प्यार की रीत क्या ? मैने जानी नहीं
न ही समझा यहाँ का है क्या कायदा
भावनाओं में उलझा रहा अब तलक
लोग मुझको खिलौना समझते रहे
चाह कर भी शिकायत नहीं कर सका
शब्द मेरे गले में अटकते रहे

और तन्हाइं दीपक जला कर कइं
दवार दिल के दिवाली मनाती रही

थे उठे ठोकरों से, गुबारों को मैं
सींच कर आँसुओं से दबाता रहा
पथ तुम्हारा सुखद हो सके इसलिये
राह में अपनी पलकें बिछता रहा
पर गये तुम तो फिर लौट आये नहीं
साथ पलकों के नजरें बिछी रह गइं
आँसुओं की उमड़ती हुइं बाढ़ में
मेरे सपनों की परछाइंयाँ बह गइं

और अम्बर से लौटी हुइं प्रतिध्वनि
शंख, ढ़ोलक , मजीरे बजाती रही

पाँव फ़िसले मेरे सर्वदा उस घड़ी
इन्च भर दूर जब था कंगूरा रहा
दूसरा अन्तरा लिख ना पाया कभी
गीत हर एक मेरा अधूरा रहा
एक पल देर से राह निकली सभीं
एक पग दूर हर एक मन्ज़िल रही
एक टुकड़ा मिली चाँदनी कम मुझे
एक जो साध थी, अजनबी हो रही

और सूनी नजर को क्षितिज पर टिका
ज़िन्दगी बस बिलम्बित बजाती रही

12 comments:

Udan Tashtari said...

और सूनी नजर को क्षितिज पर टिका
ज़िन्दगी बस बिलम्बित बजाती रही


--उत्कृष्ट.. अब और क्या कहूँ...शब्द होते नहीं मेरे पास शब्दकोष में, जिनसे आपकी मैं तारीफ करुँ...वाह वाह करके खुद संतुष्ट हो जाता हूँ.

अमिताभ मीत said...

और सूनी नजर को क्षितिज पर टिका
ज़िन्दगी बस बिलम्बित बजाती रही

आह ! कुछ कहना नहीं है. अच्छा लगा रहा है.

Satish Saxena said...

"तुम को आवाज़ देता रहा हर निमिष
पर महज गूँज ही लौट आती रही"

बहुत सुंदर वर्णन,अपूर्ण इच्छाओं का !

रंजू भाटिया said...

पथ तुम्हारा सुखद हो सके इसलिये
राह में अपनी पलकें बिछता रहा
पर गये तुम तो फिर लौट आये नहीं
साथ पलकों के नजरें बिछी रह गइं
आँसुओं की उमड़ती हुइं बाढ़ में
मेरे सपनों की परछाइंयाँ बह गई

लाजवाब .बहुत सुंदर ...

परमजीत सिहँ बाली said...

राकेश जीबहुत बेहतरीन गीत है।बहुत सुन्दर लिखा है-

एक पल देर से राह निकली सभीं
एक पग दूर हर एक मन्ज़िल रही
एक टुकड़ा मिली चाँदनी कम मुझे
एक जो साध थी, अजनबी हो रही

seema gupta said...

पाँव फ़िसले मेरे सर्वदा उस घड़ी
इन्च भर दूर जब था कंगूरा रहा
दूसरा अन्तरा लिख ना पाया कभी
गीत हर एक मेरा अधूरा रहा
" very beautiful composition" and ya thanks for your suggetsion and guiedence on my blog.

Regards

नीरज गोस्वामी said...

गीत लेखन के जिस शिखर पर आप बैठे हैं उसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती...सिर्फ़ दूर से नमन ही किया जा सकता है...हमेशा की तरह एक और लाजवाब रचना...
नीरज

बालकिशन said...

वाह वाह
बेहतरीन और उम्दा.
आपको पढ़ना बहुत सुखद हमेशा की तरह.

कंचन सिंह चौहान said...

पाँव फ़िसले मेरे सर्वदा उस घड़ी
इन्च भर दूर जब था कंगूरा रहा
दूसरा अन्तरा लिख ना पाया कभी
गीत हर एक मेरा अधूरा रहा
एक पल देर से राह निकली सभीं
एक पग दूर हर एक मन्ज़िल रही
एक टुकड़ा मिली चाँदनी कम मुझे
एक जो साध थी, अजनबी हो रही

और सूनी नजर को क्षितिज पर टिका
ज़िन्दगी बस बिलम्बित बजाती रही


mera bas chale to blogger kaviyo.n ka naresh bana du.n aap ko...! aise shabda, bhav, lay ka sammishran aur kaha.n milta hai..?
bahut hi sundar

समयचक्र said...

थे उठे ठोकरों से, गुबारों को मैं
सींच कर आँसुओं से दबाता रहा
पथ तुम्हारा सुखद हो सके इसलिये
राह में अपनी पलकें बिछता रहा.
वाह बेहतरीन रचना.

मोहन वशिष्‍ठ said...

बहुत अच्‍छी कविता आपकी

थे उठे ठोकरों से, गुबारों को मैं
सींच कर आँसुओं से दबाता रहा
पथ तुम्हारा सुखद हो सके इसलिये
राह में अपनी पलकें बिछता रहा
पर गये तुम तो फिर लौट आये नहीं
साथ पलकों के नजरें बिछी रह गइं
आँसुओं की उमड़ती हुइं बाढ़ में
मेरे सपनों की परछाइंयाँ बह गइं


बधाई हो

Shar said...

बहुत खूब!

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