हो गई जड़ ये कलम अब

लेखनी अब हो गई स्थिर
भाव की बदली न छाती मन-गगन पर आजकल घिर

आँख से बहती नहीं अब कोई अनुभूति पिघल कर
स्वर नहीं उमड़े गले से, होंठ पर आये फ़िसल कर
उंगलियों की थरथराहट को न मिलता कोई सांचा
रह गया संदेश कोशिश का लिखा, हर इक अवांचा

गूँजता केवल ठहाका, झनझनाते मौन का फ़िर

चैत-फ़ागुन,पौष-सावन, कुछ नहीं मन में जगाते
स्वप्न सारे थक गये हैं नैन-पट दस्तक लगाते
अर्थहीना हो गया हर पल विरह का व मिलन का
कुछ नहीं करता उजाला, रात का हो याकि दिन का

झील सोई को जगा पाता न कंकर कोई भी गिर

दोपहर व सांझ सूनी, याद कोई भी न बाकी
ले खड़ी रीते कलश को, आज सुधि की मौन साकी
दीप की इक टिमटिमाती वर्त्तिका बस पूछती है
हैं कहां वे शाख जिन पर बैठ कोयल कूकती है

रिक्तता का चित्र आता नैन के सन्मुख उभर फिर

जो हवा की चहलकदमी को नये नित नाम देती
जो समंदर की लहर हर एक बढ़ कर थाम लेती
जो क्षितिज से रंग ले रँगती दिवस को यामिनी को
जो जड़ा करती सितारे नभ, घटा में दामिनी को

वह कलम जड़ हो गई, आशीष चाहे- आयु हो चिर

6 comments:

Udan Tashtari said...

जो हवा की चहलकदमी को नये नित नाम देती
जो समंदर की लहर हर एक बढ़ कर थाम लेती
जो क्षितिज से रंग ले रँगती दिवस को यामिनी को
जो जड़ा करती सितारे नभ, घटा में दामिनी को

वह कलम जड़ हो गई, आशीष चाहे- आयु हो चिर

---अति सुन्दर!! हमेशा की ही तरह अद्भुत.

Sajeev said...

चैत-फ़ागुन,पौष-सावन, कुछ नहीं मन में जगाते
स्वप्न सारे थक गये हैं नैन-पट दस्तक लगाते
अर्थहीना हो गया हर पल विरह का व मिलन का
कुछ नहीं करता उजाला, रात का हो याकि दिन का

झील सोई को जगा पाता न कंकर कोई भी गिर

सच ऐसा भी होता है कभी कभी ..... बेहद सुंदर रचना राकेश जी



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09871123997

SahityaShilpi said...

गूँजता केवल ठहाका, झनझनाते मौन का फ़िर

वाह राकेश जी! बहुत ही सुंदर गीत, हमेशा की तरह!

- अजय यादव
http://ajayyadavace.blogspot.com/
http://merekavimitra.blogspot.com/

महावीर said...

हृदय-स्पर्शी मानवीय भावनाओं से ओत-प्रोत, भाषा भव्य एवं उच्च कोटि का शब्द-विधान, शब्द-शक्तियों का सुंदर प्रयोग - आपकी काव्यमयी शैली की विशेषताओं के द्योतक हैं। बहुत सुंदर कविता है।
हाँ, आज मेरी एक इच्छा पूरी हो गई। निनाद गाथा में आपको सुनने का आनंद-लाभ प्राप्त हुआ। उसके लिए धन्यवाद।

राकेश खंडेलवाल said...

समीर भाई, अजयजी, संजीवजी

सादर धन्यवाद

आदरणीय महावीरजी,

आपका हर शब्द मेरे लिये प्रेरणादयाक होता है. आपका आशीष शिरोधार्य है.

Mohinder56 said...

राकेश जी,

एक श्रेष्ठ रचना.. आप जिस तरह से एक सामन्य परिवेश से असामन्य और अद्बभुत उपमा की रचना कर लेते हैं अब अति सराहनीय है..

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