गाँव का व्यवहार क्या हो

( गीत सुनने के लिये कॄपया ध्वनि चालू कर लें )

प्रश्न तो कर लूं
मगर फिर प्रश्न उठता है
कि मेरे प्रश्न का आधार क्या हो
पार वाली झोंपड़ी से गांव का व्यवहार क्या हो ?

भावना के दायरे में जो सिमट बैठीं अचानक
दूरियों के मापने का कौन सा प्रतिमान मानें
अजनबियत की गहन गहरी बिछी इन घाटियों में
पार जाने का सही है कौन सा पथ आज जानें
व्योम से लेकर धरा तक, स्वप्न के सेतु बनाकर
चल रहे जो खींच कर हम आस के खाके सुनहरी
उन पथों पर भोर कर लें या कि संध्या कोई बोले
क्या भरें आलाप, छेड़ें बाँसुरी की याकि तानें

छिन्न मस्ता आस्था ने सौंप रखे ज़िन्दगी को
दर्द के बोझिल पलों का आखिरी उपचार क्या हो ?

टूटते अनुबंध की कड़ियाँ पिरोते रात बीती
शेष जो सौगंध के मानी रहे वो हाशियों पर
बीज बो नित जो उगाईं चाहतों के रश्मिरथ पर
किस गगन के जलद चल कर आ सकेंगे रास्तों पर
चल रहे जिन उंगलियों को थाम कर हम इस सफ़र में
है सुनिश्चित क्या, कि मंज़िल तक हमारा साथ देंगी
छटपटातीं ताकतीं सुधियाँ दिशाओं के झरोखे
नाम किसका लिख सकेगा बिन पते की पातियों पर

ज़िन्दगी के मंच पर बिखरीं हजारों पटकथायें
कशमकश है इन सभी का एक उपसंहार क्या हो ?

हो गई विस्मॄत शपथ जो अग्नि के सन्मुख उठी थीं
हमकदम सब राह के थक दूर पीछे रह गये हैं
क्षुद्र टुकड़ों में बंटी है संस्कॄतियों की धरोहर
श्वास के अवलंब सारे आंधियों में बह गये हैं
मान कर जिन पत्थरों को देवता पूजा किये हम
प्राण उनमें क्या कभी कोई पुजारी पा सकेगा
कल्पना के इन्द्रधनुषों को तलाशें सात अंबर
रंग थे जिनमें बसे, वे महल सारे ढह गये हैं

रूठ कर बैठे पलों को ज़िन्दगी के जो मना ले
प्रश्न लेकर घूमता हूँ एक वो मनुहार क्या हो ?

पार वाली झोंपड़ी से गांव का व्यवहार क्या हो.



4 comments:

Udan Tashtari said...

राकेश भाई

यह अभिनव प्रयास है कि हम कविता पढ़ने के साथ साथ सुन भी पा रहे हैं और इसके माध्यम से कवि के सही भावों तक पहुंचने का सचमुच आनन्द ही अलग है. आपके इस प्रयास के लिये साधुवाद.

यह मेरे लिये और अन्य कवियों के लिये ब्लागिंग के नये आयाम स्थापित करने वाली पोस्ट है, बधाई स्विकारें. :)

Dr.Bhawna Kunwar said...
This comment has been removed by the author.
Dr.Bhawna Kunwar said...

राकेश जी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बहुत-बहुत बधाई।

Shardula said...

तुम जीवन-शोभा के गायक, भक्ति-विरह-श्रृंगार विधायक
सच्चाई की बात हुई तो, "गाँव का व्यवहार" लिख गए
हर गीत तुम्हारा एक कहानी, शैल बीच ज्यों बहता पानी
चार दिवस का जीवन तो क्या, तुम सच सौ-सौ बार लिख गए

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...